वैश्विक आर्थिक संकट और भारत
विश्व की महाशक्ति अमेरिका का आर्थिक संकट पुरी दुनिया को अपने आगोश में लेता जा रहा है। दुनिया भर के शेयर बाजार लगातार रसातल की और जा रहे हैं। विकसित देशों के बैंक सरकारी बैलआउट की संजीवनी के सहारे आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। इसके बावजूद देश के वित्त मंत्री पी चिदंबरम, वाणिज्य मंत्री कमल नाथ और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहूलवालिया ने भारतीय अर्थव्यस्था पर अडिग विश्वाश व्यक्त करते हुए कहा है की वैश्विक संकट का असर भारत पर नही पढेगा, शेयर बाजार में जल्द सुधार होगा।लेकीन इनका यह औवर्कांफिदैंस बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज पर कोई सकारात्मक प्रभाव नही डाल पाया। शेयर बाजार में गिरावट जारी रही और बाजार अपने दो वर्षों के न्यूनतम स्तर पर पहुँच गया यानी ११००० के अंक को छू गया स्थिति यह थी की बाजार से जुरे लोग तो इसके १०००० अंक तक पहुँचने का कयास लगाने लगे थे।
दूसरी और देश की प्रमुख कम्पनियाँ अपने आईपीओ लाने की योजना को स्थगित कर रही है। कई कंपनियों ने अपने उत्पादन को २० से २५ प्रतिशत तक कम कर दिया है। आई टी कम्पनिओं ने छंटनी शुरू कर दी है। जिस आई टी उद्योग के फलने फूलने के पीछे अजीज प्रेम जी और नारायण मूर्ती का लोहा माना जाता था, उनके रहते हुए ही इस सेक्टर में भारी तबाही की सम्भावना व्यक्त की जा रही है यानी इन दोनों की प्रतिभा की पोल खुलने वाली है। ये कम्पनियाय लीमन ब्रदर्स के साथ सालाना लगभग ७०० करोर का व्यवसाय करती थीं । फिक्की द्वारा किया गया अध्ययन स्पष्ट कहता है की ४४ प्रतिशा कंपनियों के मुनाफे में कमी आयेगी। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह की दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति बिल गेत्ट्स को यह कहना पढ़ा है की "वित्तीय संकट पूंजीवाद का अंत नही "। देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वयम फ्रांस और अमेरिका की यात्रा से वापस आने के बाद कहा था की "भारत भी इस संकट से अछूता नही रह सकता "। इसके बावजूद ये तीनों विद्वान भारत को इस संकट से बचा लेने का दावा कर रहे हैं। जबकि इसे १९२९ के बाद से सबसे बढ़ा संकट माना जा रहा है। जिसने पूरी दुनिया में तबाही मचाई थी। आज विश्व के देश और भी निकट आयें हैं। दुनिया को एक गाँव बनाने की कवायद शुरू (भूमंडलीकरण) होने के बाद यह सबसे बढ़ा आर्थिक संकट है। लेकिन इन विद्वानों का यह कहना की वैश्विक गाँव में आए तूफ़ान से हम बच जायेंगे हास्यास्पद है। ये कह रहे हैं हमारी अर्थव्यस्था मजबूत है जैसे की अमेरिका की अर्थव्यस्था बहुत कमजोर रही हो। शायद हम अमेरिका से ज्यादा मजबूत तो नही! इसलिए सपने बेचने के बजाय जमीन पर आकर देश को संकट से बचने का प्रयास कीजिये चिदंबरम साहब !
विश्व की महाशक्ति अमेरिका का आर्थिक संकट पुरी दुनिया को अपने आगोश में लेता जा रहा है। दुनिया भर के शेयर बाजार लगातार रसातल की और जा रहे हैं। विकसित देशों के बैंक सरकारी बैलआउट की संजीवनी के सहारे आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। इसके बावजूद देश के वित्त मंत्री पी चिदंबरम, वाणिज्य मंत्री कमल नाथ और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहूलवालिया ने भारतीय अर्थव्यस्था पर अडिग विश्वाश व्यक्त करते हुए कहा है की वैश्विक संकट का असर भारत पर नही पढेगा, शेयर बाजार में जल्द सुधार होगा।लेकीन इनका यह औवर्कांफिदैंस बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज पर कोई सकारात्मक प्रभाव नही डाल पाया। शेयर बाजार में गिरावट जारी रही और बाजार अपने दो वर्षों के न्यूनतम स्तर पर पहुँच गया यानी ११००० के अंक को छू गया स्थिति यह थी की बाजार से जुरे लोग तो इसके १०००० अंक तक पहुँचने का कयास लगाने लगे थे।
दूसरी और देश की प्रमुख कम्पनियाँ अपने आईपीओ लाने की योजना को स्थगित कर रही है। कई कंपनियों ने अपने उत्पादन को २० से २५ प्रतिशत तक कम कर दिया है। आई टी कम्पनिओं ने छंटनी शुरू कर दी है। जिस आई टी उद्योग के फलने फूलने के पीछे अजीज प्रेम जी और नारायण मूर्ती का लोहा माना जाता था, उनके रहते हुए ही इस सेक्टर में भारी तबाही की सम्भावना व्यक्त की जा रही है यानी इन दोनों की प्रतिभा की पोल खुलने वाली है। ये कम्पनियाय लीमन ब्रदर्स के साथ सालाना लगभग ७०० करोर का व्यवसाय करती थीं । फिक्की द्वारा किया गया अध्ययन स्पष्ट कहता है की ४४ प्रतिशा कंपनियों के मुनाफे में कमी आयेगी। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह की दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति बिल गेत्ट्स को यह कहना पढ़ा है की "वित्तीय संकट पूंजीवाद का अंत नही "। देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वयम फ्रांस और अमेरिका की यात्रा से वापस आने के बाद कहा था की "भारत भी इस संकट से अछूता नही रह सकता "। इसके बावजूद ये तीनों विद्वान भारत को इस संकट से बचा लेने का दावा कर रहे हैं। जबकि इसे १९२९ के बाद से सबसे बढ़ा संकट माना जा रहा है। जिसने पूरी दुनिया में तबाही मचाई थी। आज विश्व के देश और भी निकट आयें हैं। दुनिया को एक गाँव बनाने की कवायद शुरू (भूमंडलीकरण) होने के बाद यह सबसे बढ़ा आर्थिक संकट है। लेकिन इन विद्वानों का यह कहना की वैश्विक गाँव में आए तूफ़ान से हम बच जायेंगे हास्यास्पद है। ये कह रहे हैं हमारी अर्थव्यस्था मजबूत है जैसे की अमेरिका की अर्थव्यस्था बहुत कमजोर रही हो। शायद हम अमेरिका से ज्यादा मजबूत तो नही! इसलिए सपने बेचने के बजाय जमीन पर आकर देश को संकट से बचने का प्रयास कीजिये चिदंबरम साहब !
1 comment:
it's true as we have been pray of so called globalization of capital which is actually a ameracanization, making us dependent on first world.
We have decreased share of agro based econmony in the wave of industrailization...which feeds millions of indians and makes self-reliant.
In a way of becoming indian multinational ,in reallity we are losing independent nautre of our ecomony which receives threats from the up-down of NY Stock Exchange.
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