Friday, May 14, 2010
गाली प्रक्ररण : गडकरी ने साबित कर दिया क़ि वे पक्के संघीय हैं
Friday, April 30, 2010
खाद्यान्न भंडारण का वही पुराना राग
Sunday, April 11, 2010
सजा-ए-मौत और सैकड़ों सवाल
(यह लेख आज के दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में छपा है )
Thursday, April 8, 2010
सिखों के कत्लेआम के ज़िम्मेदार कमलनाथ जैसे लोगों को छोड़ा नहीं जाएगा: अमेरिका में प्रदर्शन
मोहेंदर सिंह ने कमलनाथ के ख़िलाफ़ न्यूयॉर्क की केंद्रीय अदालत में मुक़दमा दायर किया है। मोहिंदर सिंह नेबीबीसी को बताया कि दिल्ली में उनके परिवार के 4 लोगों को बेरहमी से मार दिया गया था.
मोहेंदर सिंह कहते हैं, “मेरे पिताजी और दो चाचा को टुकड़े टुकड़े करके जला कर मार डाला गया. हमारे दादाजी नेइतने सालों से अदालतों के चक्कर लगाए लेकिन हमें इंसाफ़ नहीं मिला. हमने 25 साल तक इंतज़ार किया लेकिनकोई नतीजा नहीं निकला. ये लोग ऐसे सुनने वाले नहीं है इसलिए हमे इनको अमरीकी अदालत में घसीटना पड़ा. हम चाहते हैं हमें इंसाफ़ मिले.”
इस मुक़दमे में सिखों की ओर से वकील गुरपतवंत पन्नुन का कहना है कि कमलनाथ जैसे लोगों को क़ानून केकटघरे में लाकर सज़ा दिलवाने की हर कोशिश की जाएगी.वकील का कहना है, “हमने तय कर लिया है कि सिखोंके कत्लेआम के ज़िम्मेदार कमलनाथ जैसे लोगों को छोड़ा नहीं जाएगा और हम इंसाफ़ लेकर ही दम लेंगे. ”
इन प्रदर्शनकारियों का यह भी कहना है कि सन 1984 में हुए सिखों के कत्लेआम को 25 साल हो गए अब इसकेदोषियों को सज़ा दी जानी चाहिए.
दिल्ली के दंगों में मारे गए लोगों में जसबीर सिंह के खानदान के 26 लोग भी शामिल थे.
वह कहते हैं,“कमलनाथ ने खड़े होकर खुद उग्र भीड़ का नेतृत्व किया था जिसने गुरूद्वारे में सिखों की हत्या करीऔर गुरूद्वारा रकाबगंज को जलाया. ऐसे कातिलों को मंत्री बनाकर अमरीका भेजकर प्रधानमंत्री क्या संदेश देना चाहते हैं.”
जसबीर सिंह कहते हैं कि इतने सालों से विभिन्न आयोगों का गठन किया गया लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ.
अब उनको अमरीका में अदालत से कुछ आस है.
सिख फ़ॉर जसटिस नामक संस्था द्वारा आयोजित इस विरोध प्रदर्शन में करीब सौ लोगों ने भाग लिया जिनमें बच्चे, महिलाएं और बूढ़े भी शामिल थे.
बहुत से प्रदर्शनकारियों का यह भी कहना था कि कमलनाथ जैसे लोगों को जिनपर मासूम लोगों के कत्लेआम काइलज़ाम लगा हो अमरीका में प्रवेश की भी आज्ञा नहीं होनी चाहिए.
न्यूयॉर्क के गुरूद्वारा बाबा मख्खंशाह के अध्यक्ष मास्टर महिंदर सिंह का कहना था कि कमलनाथ जैसे लोगों को तोजेल में होना चाहिए न कि मंत्री पद पर.
वह कहते हैं, “भारत सरकार को चाहिए कि कमलनाथ जैसे मंत्री को निकाल बाहर करें और ढंग के लोग ले आएं. ऐसे लोगों के बग़ैर भी मुल्क चल सकता है. कमलनाथ को तो मंत्री पद से हटाकर उनपर मुक़दमा चलाया जानाचाहिए.”
Monday, April 5, 2010
दलहन क्षेत्र में आत्मनिर्भरता जरूरी
Saturday, April 3, 2010
कौड़ियों के भाव बिकता आलू
| | |
|
Saturday, March 27, 2010
दाल गलाने की कोशिश
भारत में शाकाहारी वर्ग की संख्या सबसे ज्यादा है। देश की खाद्य शैली में दाल प्रोटीन का सबसे बड़ा स्रोत है। पर बीते सालों में जिस गति से दालों की कीमतें बढ़ी हैं आम आदमी की ही नहीं बल्कि मध्य वर्ग की थाली से भी दाल दूर होती गई है। आसमान छूती कीमतों को नियंत्रित करने में सरकार कई प्रयासों के बावजूद असफल रही। पर दाल संकट की छाया केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा प्रस्तुत हाल के बजट में भी देखने को मिली। बजट में दलहन व तिलहन का उत्पादन बढ़ाने के लिए विशेष बजट का प्रावधान किया गया है। दरअसल, भारत दुनिया का सबसे बड़ा दाल उत्पादक देश होने के साथ-साथ सबसे बड़ा उपभोक्ता देश भी है। फिर भी उत्पादित दाल समुचित आपूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं होती और देश को विदेश से आयात पर निर्भर रहना पड़ता है।
देश में दाल की खपत लगभग १८० लाख टन है जबकि उत्पादन क्षमता १५० लाख टन तक ही सीमित है। जिस वजह से ३० लाख टन से अधिक दाल आयात करनी पड़ती है। १९९४ में जहां देश ५.८ लाख टन दाल आयात करता था वहीं २००९ में दाल आयात २३ लाख टन पहुंच गया है। गौर करने वाली बात यह है कि देश में बढ़ती जनसंख्या के साथ ही प्रति वर्ष ५ लाख टन दाल की खपत बढ़ रही है। यदि घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए अभी से प्रयास नहीं किए गए तो २०१२ तक देश को प्रतिवर्ष ४० लाख टन दाल आयात करनी पड़ेगी।
घरेलू उत्पादन में कमी और विदेश से ऊंचे भाव में दाल आयात करने के कारण ही दाल की कीमतें लगातार बढ़ी हैं। २००९ में ही दाल की कीमत लगभग दोगुनी हो गई। इसका परिणाम है कि घरों का बजट दाल का खर्च वहन नहीं कर पा रहा है। दाल का उपभोग निरंतर घट रहा है। ४० सालों में प्रति व्यक्ति उपभोग २७ किग्रा प्रतिवर्ष से घट कर ११ किग्रा रह गया है। जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद खतरनाक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सिफारिश है कि प्रति व्यक्ति प्रति दिन ८० ग्राम दाल उपभोग होना चाहिए यानी स्वास्थ्य की दृष्टि से प्रतिवर्ष २९ किग्रा से ज्यादा। फिलहाल सुखद संकेत यह है कि दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार ने अतिरिक्त धन आंवटित किया।
बजट में वर्षा सिंचित क्षेत्रों में ६०,००० दलहल एवं तिलहन ग्राम बनाने की घोषणा की गई है। हालांकि देश में दाल उत्पादन जिस स्तर पर पहुंच गया है उसमें एक झटके में सुधार नहीं होगा। सरकार की मंशा तभी पूरी हो सकती है जब वह किसानों को दाल उत्पादन में लाभ दिखा सके और किसान दाल की खेती की ओर आकर्षित हों।