Friday, October 31, 2008

विष्णु अवतार आडवानी ......आतंकवाद का अंत करेंगे


बचपन मैं एक सवाल मन में कोंधता था की साँप बरसात में इतने ज्यादा क्यों दिखाई देते हैं। पता चला की उनके बिलों में पानी भर जाता है इसलिए वे बिलों से बहार आ जाते हैं। ऐसा ही सवाल आजकल मन में आजकल और कोंध रहा है। सवाल लाल कृष्ण आडवानी जी से जुडा है। सवाल है की आख़िर आतंकवादी बारदात होते ही आडवानी जी कहाँ से प्रकट हो जाते हैं? आप कह रहे होंगे क्या पहेली बुझाने लगा .....


सच में ..... मैं १०-१२ दिन से आडवानी जी को खोज रहा था। टीवी के चैनल बदल बदल कर मैंने रिमोट कंट्रोल ख़राब कर दिया। आख़िर सुनना चाहता था की आडवानी जी हिंदू पवन, हिंदू धर्मेन्द्र और हिंदू राहुल की मराठी विवाद के चलते हुयी मौत पर क्या कहते हैं। सुनना चाहता था की वे हिंदू टर्न मराठी हीरो राज ठाकरे द्वारा महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय घुसपेठियों के ख़िलाफ़ चलाये जा रहे अभियान की क्या व्याख्या करते हैं। गत दिनों आतंकवाद पर उन्होंने कहा था की 'हर मुसलमान आतंकवादी नही पर हर पकड़ा जाने वाला आतंकवादी मुसलमान होता है।' साध्वी प्रज्ञा की गिरफ्तारी के बाद उनके विचारों में क्या अन्तर आया। लेकिन वे कहीं नही दिखायी दिए। कल असाम में बम विस्फोट हुआ आडवानी जी ने तत्काल दर्शन दिए। सभी जगह उनकी प्रतिक्रिया सुनने और पढने को मिली। उन्हें आशंका है की घुसपेठिये बांग्लादेशियों का हाथ बम धमाकों के पीछे हो सकता है। बम विस्फोट होने के बाद काफी तेज चलता है इनका दिमाग। एकदम अनुमान लगा लेते हैं कोन हमलो के पीछे हो सकता है। निशाना भी अर्जुन की तरह लगाते हैं। बस एक ही है लक्ष्य मुस्लिम आतंकवाद का अंत। बंगलादेशी बोले तो .....


मुझे तो लगता है आडवानी जी विष्णु भगवान् के अवतार है । कलयुग में आतंकवाद का अंत करने के लिए ही आडवानी ली ने जन्म लिया है। जैसे राम ने त्रेता युग में रावन का और कृष्ण ने द्वापर युग में कंस का वध करने के लिए अवतार लिया था। यह बात अलग है की कृष्ण का जन्म जेल में हुआ था कंस बहार था। इसबार कंस जेल में अपना वध होने का इंतजार कर रहा है और कृष्ण बाहर वध करने को बैचेन हैं....आख़िर कलयुग है भाई ........

Wednesday, October 29, 2008

यहां सेक्स टैबू है, स्त्री के लिए

सेक्स को हमारे यहां हमेशा से ही टैबू माना गया है। सेक्स पर बात करना। उसे जग-ज़ाहिर करना या आपस में शेयर करना। हर कहीं सेक्स प्रतिबंधित है। सेक्स का जिक्र आते ही क्षणभर में हमारी सभ्यता-संस्कृति ख़तरे में पड़ जाती है। मुंह पर हाथ रखकर सेक्स की बात पर शर्म और गंदगी व्यक्त की जाती है। सेक्स को इस कदर घृणा की दृष्टि से देखा जाता है, मानो वो दुनिया की सबसे तुच्छ चीज हो।
खुलकर सेक्स का विरोध करते हुए मैंने उन सभ्यता-संस्कृति रक्षकों को भी देखा है जिन्हें सड़क चलती हर लड़की में 'गज़ब का माल' दिखाई देता है। जिन्हें देखकर उनके हाथ और दिमाग न जाने कहां-कहां स्वतः ही विचरण करने लगते हैं। जिन्हें रात के अंधेरे में नीली-फिल्में देखने में कतई शर्म नहीं आती और नीली-फिल्मों के साथ रंगीन-माल भी हर वक्त जिनकी प्राथमिकता में बना रहता है। परंतु रात से सुबह होते-होते उनका सेक्स-मोह 'सेक्स-टैबू' में बदल जाता है। हमारे पुराणों तक में लिखा है कि यौन-सुख स्त्री के लिए वर्जित, पुरुष के लिए हर वक्त खुला है। पुरुष आजाद है हर कहीं 'मुंह मारने' के लिए। यही कारण है स्त्री को अपना सेक्स चुनने की आजादी हमारे यहां नहीं है।
यह सही है कि हम परिवर्तन के दौर से गुज़र रहे हैं। हर दिन, हर पल हमारे आस-पास कुछ न कुछ बदल रहा है। हम आधुनिक हो रहे हैं। यहां तक कि टीवी पर दिखाए जाने वाले कंडोम, केयरफ्री, ब्रा-पेंटी के विज्ञापनों को भी हम खुलकर देख रहे हैं। एक-दूसरे को बता भी रहे हैं। मगर सेक्स को स्वीकारने और इस पर अधिकार जताने को अभी-भी हमने अपनी सभ्यता-संस्कृति के ताबूतों में कैद कर रखा है। हमें हर पल डर सताता रहता है कि सेक्स का प्रेत अगर कहीं बाहर आ गया तो हमारी तमाम पौराणिक मान्यताएं-स्थापनाएं पलभर में ध्वस्त हो जाएंगीं। हम पश्चिमी भोगवाद के शिकार हो जाएंगें। इसलिए जितना हो सके कोशिश करो अपनी मां-बहनों, पत्नियों को सेक्स से दूर रखने और उन्हें अपनी इच्छाओं से अपाहिज बनाने की।
हमारे पुराणों तक में लिखा है कि यौन-सुख स्त्री के लिए वर्जित, पुरुष के लिए हर वक्त खुला है। पुरुष आजाद है हर कहीं 'मुंह मारने' के लिए। यही कारण है स्त्री को अपना सेक्स चुनने की आजादी हमारे यहां नहीं है।
गज़ब की बात यह है स्त्री-सेक्स पर प्रायः वे लोग भी अपना मुंह सींये रहते हैं जो स्त्री-विमर्श के बहाने 'स्त्री-देह' के सबसे बड़े समर्थक बने फिरते हैं। स्त्री जब अपने सुख के लिए सेक्स की मांग करने लगती है तो परंपरावादियों की तरह उनके तन-बदन में भी आग-सी लग जाती है। इन स्त्री-विमर्शवादियों को सेक्स के मामले में वही दबी-सिमटी स्त्री ही चाहिए जो मांग या प्रतिकार न कर सके।
पता नहीं लोग यह कैसे मान बैठे हैं कि हम और हमारा समाज निरंतर बदल या विकसित हो रहा है। आज भी जब मैं किसी स्त्री को दहेज या यौन शोषण के मामलों में मरते हुए देखती हूं तो मुझे लगता है हम अभी भी सदियों पुरानी दुनिया में जी रहे हैं।
मुझे एक बात का जवाब आप सभी से चाहिए आखिर जब पुरुष अपने बल पर अंदरूनी और बाहरी सारे सुख भोगने को स्वतंत्र है तो यह आजादी स्त्रियों को क्यों और किसलिए नहीं दी जाती?
क्या इच्छाएं सिर्फ पुरुषों की ही गुलाम होती हैं, स्त्रियों की नहीं?
अनुजा रस्तोगी

Monday, October 27, 2008

दिवाली बम्पर आफर. दीजिये दो सवालों के जवाब और बनिए मालामाल

दिवाली पर इस 'बम्पर दिवाली आफर' प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। आपको सिर्फ़ दो सवालों का उत्तर देना है। सवाल पूछने से पहले आपको मेरी कुछ पंक्तिया पढ़नी होंगी। शायद इन पंक्तियों में ही इन सवालों का उत्तर मिल जाए।

आजकल देश में हो रही घटनाएँ अत्यन्त निराश करने वाली हैं। यह सिलसिला कब रुकेगा मैं नही जानता। हाँ, लेकिन इतना जरुर जानता हूँ की मैं महान हूँ। बुरे के लिए जो भी संबोधन हो सकता है वह आप हैं। मैं हिंदू हूँ इसलिए हिंदू अच्छे होते है , मैं भारतीय हूँ इसलिए भारतीय अच्छे होते हैं। मैं उत्तर भारतीय हूँ इसलिए उत्तर भारतीय अच्छे होते है। मैं और गहराई में जाता हूँ मैं ब्राहमण हूँ इसलिए ब्राहमण अच्छे होते है। यही है न हमारी अच्छे बुरे की परिभाषा। मेरे हिंदू धर्म में जो कुछ ग़लत है वह सामाजिक कुरुती है। मुस्लिस धर्म में जो कुछ ग़लत है वह कट्टरता है। मैं भारतीय हूँ इसलिए आजादी के ६१ सालों में हमने कोई गलती नही की। सभी गलतियां की पकिस्तान ने, बांग्लादेश ने, नेपाल ने, चीन ने। ऐसा क्यों है की मैं और हम कभी गलतियां नही करते। हम उत्तर भारतीयों ने राज ठाकरे के नेतृत्व में मुंबई में मुस्लिमों को मारा तो ठीक था। राज ठाकरे हमारा हीरो था। आज वही राज उत्तर भारतियों को मार रहा है तो राज ठाकरे ग़लत हो गया। कैसी है हमारी परिभाषा ? कहाँ ले जायेंगे इन मानकों से हम अपने समाज को.... देश को.... विश्व को...... बोर कर दिया ?

इसलिए सोचा इसी विषय पर दिवाली पर एक प्रतियोगिता का आयोजन किया जाए। वैसे अभी तक जिन लोगों से भी मैंने यह सवाल पूछें है वे फ़ैल हो गए। प्रतियोगिता में भागीदारी के लिए राष्ट्रीयता धर्म आदि कोई बाध्यता नही है।

आप को सिर्फ़ इतना करना है की आप जिस देश, धर्म, जाति, समुदाय के हैं उसकी पाँच कमियाँ बतानी हैं । इसके विपरीत दुसरे देश, धर्म, जाति, समुदाय की ३ खूबियाँ बतानी हैं। उदहारण के लिए आप हिंदू हैं तो आपको इस धर्म की ५ कमियां बतानी हैं और मुस्लिम धर्म की ३ अच्छी बातें। ऐसे ही आप भारतीय हैं तो १९४७ से अब तक भारत द्वारा दूसरे देशों से की गई ५ गलतियां बताइए और दूसरे देश की ३ अच्छे बातें बताइए। उत्तर के लिए ज्यादा मत सोचिये और जल्दी जवाब लिख डालिए। प्रतियोगिता जितने वाले को मानवीयता के सबसे बढे पुरुष्कार से नवाजा जाएगा। नोबेल से भी बढे पुरुष्कार से तो अब दे डालिए जवाब ओर बनिए मालामाल .....

Saturday, October 25, 2008

साध्वी की गिरफ्तारी मीडिया की लीड क्यों नही बनी ?

मालेगाँव धमाकों के लिए हिंदू संगठन से जुड़े ३ लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इनमें एक साध्वी प्रज्ञा सिंह है। इनकी गिरफ्तारी ने एक नई बहस को जन्म दिया है। ये आतंकवादी हैं, देश भक्त या हिंदू हितेषी यह तो वक़्त बताएगा। यहाँ मेरी चर्चा का विषय है मीडिया। सुबह उठा तो यही सोचा था की आज समाचार पत्र इसी ख़बर से भरे होंगे। तीनों आतंकवादियों की फोटो छपी होगी। (माफ़ करें कथित आतंकवादी) जैसा की मीडिया की आदत है बगेर फोटो के भी आतंकवादियों की फोटो छाप ही देते हैं। खोजी पत्रकारों ने इनके तार जुड़े होने की पड़ताल की होगी , जैसा की हर बार धमाकों के लिए जिम्मेदार लोगों के पकड़े जाने के बाद ये देश विदेश से उनके तार जुड़े होने की पड़ताल करते है। सोचा था तार जोड़े होंगे नागपुर से गाँधी नगर आदि आदि स्थानों से। ख़बर के बगल में भविष्यतम प्रधानमंत्री आडवानी जी का बयान छपा होगा ' देश को पोटा की सख्त जरुरत ' । सोचा था पोटा तो है नही इन पर देशद्रोह का मुकदमा लगाया गया होगा।
सबसे पहले देखा नव भारत टाइम्स उसके प्रथम प्रष्ट पर से ख़बर ही गायब थी। टाइम्स आफ इंडिया उठाया उसमें छोटी सी ख़बर थी। जनसत्ता में भी ऐसा ही था। ख़बर को पढ़ा तो पत्रकारिता के नियमों का पुरा पालन किया गया था । कथित शब्द का इस्तेमाल था। फ़िर सोचा उन समाचार पत्रों को देखा जाए जो देश के बारे में ज्यादा चिंतित रहते हैं। कम्पूटर पर बैठा। दैनिक जागरण खोला वहां भी आतंकवाद गायब था। सोचा ख़बर राष्ट्रिय महत्व की नही है। चला महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के अखबार देखने। वहां भी यह लीड नही थी।
कितना अजीब है कुछ समय पहले तक देश के प्रधानमंत्री से लेकर नगर पालिका परिषद् के पार्षद तक बम धमाकों यानि आतंकवाद को देश के लिए सबसे बढ़ा शत्रु कह रहे थे। मीडिया भी इनके सुर में सुर मिला रहा था । क्या गैर हिन्दुओं द्वारा किए गए बम विस्फोट ही देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक होते हैं

Friday, October 24, 2008

सबप्राइम संकट क्या है ? ..........

सबप्राइम संकट आजकल सबकी जुबान पर चढा है। अमेरिका में यह शब्द इतना आम हो गया था की अमेरिका के एक संगठन 'अमेरिकी दाइलेक्त सोसायटी' ने सबप्राइम शब्द को 'वर्ड ऑफ़ द ईयर२००७' घोषित किया था । अमेरिका में सबप्राइम ऋण की एक केटेगरी है। अमेरिका में ऋण को उन पर जोखिम के आधार पर अलग - अलग केटेगरी में रखा गया है। सबसे कम जोखिम वाले ऋण 'प्राइम ऋण' कहलाते हैं। इनके डूबने की संभावना बहुत कम होती है। इससे अधिक जोखिम वाले ऋण 'अल्ट ऋण' कहलाते हैं। सबसे अधिक जोखिम वाले ऋणों को 'सबप्राइम ऋण' कहा जाता है। इनकी ब्याज दरें ऊँची होती हैं। कर्जदाता इन ऋणों को देते समय ऋण क्रेताओं का ज्यादा रिकोर्ड नही देखते। कोई चीज बंधक रखकर दे देते है। इसके अंतर्गत ही अमेरिका के निवेशक बैंकों ने जमकर ऋण दिए। यह दौर तब शुरू हुआ जब अमेरिका में 'हाऊसिंग बूम' आया था यानी आवास के मूल्य आसमान छु रहे थे। इस स्थिति में घरों के मालिक अपने घरों को गिरवी रखकर ऋण ले सकते थे। चूँकि घर बनाने में पाँचों उंगली घी में नजर आ रही थी लोग ऋण लेकर घर बनाते थे और इससे अच्छा मुनाफा कमाते थे। हाऊसिंग बूम की स्थिति में बैंकों को भी फायदा ही फायदा था। ऋण लेने वाले ऋण नही भी चुका पाते तो भी बैंक उनके गिरवी घर बेचकर अपना रुपया वसूल लेते थे। इस प्रकार ऋण लेने वालों की संख्या लगातार बढ़ती गयी। २००५ तक बैंक ६३५ अरब डॉलर का ऋण दे चुके । २००७ तक ये १० ख़राब डॉलर तक पहुँच गए।

जैसा की इन ऋणों की ब्याज दरें बाजार पर निर्भर थी जैसे - जैसे ऋण लेने वालों की संख्या में वृद्धी होती गई ब्याज दरें भी बढ़ती गई । लेकिन माग पूर्ति के नियमानुसार घरों के अन्धाधून्द निर्माण से घरों की कीमतों में कमी आ गई । घरों की मांग कम होती गई । इस प्रकार घरों को बेचना कठिन होता गया या घरों के मालिक मामूली कीमतों पर घर बेचने को मजबूर होते गए। इस स्तिथि में ऋण लेने वाले ऋण चुकाने में असमर्थ हो गए । चूंकि ये ऋण घर गिरवी रखकर लिए गए थे इसलिए वे पुराना घर भी नही बेच सकते थेपरिणामस्वरूप अमेरिका में बैंक दिफोल्टरों की संख्या बढ़ती गई । अन्तत इसका नुक्सान बैंकों को ही हुआ । घरों की कीमत घट जाने के कारण अब बैंक घरों को बेचकर अपना रूपया भी नही वसूल सकते थे । इस प्रकार हाऊसिंग उद्योग ४-५ वर्षों तक अमेरिकी अर्थव्यस्था का केन्द्र बना रहा २००६ से सबप्राइम संकट प्रारम्भ हुआ । १०० से अधिक ऋण दाता संस्थानो ने अपने को दिवालिया घोषित करने की अर्जी दे डाली। अनेरिका के बुद्धिजीवियों और मीडिया के एक हिस्से ने इस संकट की और बार -बार संकेत किया लेकिन सरकार ने इसे गंभीरता से नही लिया। १५ अगस्त २००७ को सब प्राइम ऋण पूरी तरह धराशायी हो गए। आज आते -आते स्थिति यह हो गयी है की अमेरिका के निवेशक बैंक दिवालिये हो गए हैं। अमेरिका की गलत नीतियों के परिणाम अब पूरी दुनिया भुगत रही है।

Tuesday, October 21, 2008

तहलका का हिन्दी संस्करण बाजार में

तहलका का हिन्दी संस्करण बाजार में आ गया है। लंबे समय से इन्तजार था। बाजार में एक अच्छी हिन्दी पत्रिका की कमी थी। पत्रिका ८४ पेज की है। कीमत २० रूपये। थोड़ा ज्यादा है ना ? कवर स्टोरी में नानावती रिपोर्ट की चीर फाड़ है। पहला पेज पलटते ही मुंबई के नए गुंडे की फोटो है। रा.........ज का इंटरव्यू है। उसे हिटलर के विकास का तरीका पसंद है। भाई साहब इंटरव्यू आधा ही देकर चले गए। तरुण जी ने सम्पादकीय में अपने कारनामे (कारनामे ही तो हुए न !) गिनाये हैं । शीर्षक है 'किश्ती नई सफर वही '। तरुण जी ने अच्छी पत्रिका के प्रकाशन के लिए पाठकों का सहयोग सर्वोपरि बताया है। उनका मन्ना है ''हिन्दी पाठक जमीनी, सरोकारी, सतर्क और सक्रीय होते है'' । अरुंधती रॉय के इंटरव्यू के बगैर पहला अंक निकले आपको अच्छा नही लगेगा । जी हाँ उनका इंटरव्यू भी है। बॉलीवुड भी है लेकिन नए अंदाज में केटरीना कैफ से मुखातिब हुआ जा सकता है। अन्तिम पेज जरूर पढियेगा। व्यक्तिगत जीवन में लोकतान्त्रिक कैसे हुआ जा सकता इसका ज्ञान मिलेगा। कंटेंट पर ज्यादा नही लिखूंगा। आपके रूपये भी तो खर्च करवाने हैं ।

पत्रिका में २१ पेज विज्ञापन हैं । पत्रिका साज सज्जा में भी अच्छी है। बस कीमत थोड़ा कम होती तो अच्छा होता है। पत्रिका विक्रेता भी कह रहा था कीमत कम राखी होती तो अच्छा था। तरुण जी को समझना चाहिए था कि हिन्दी पाठक जमीनी होता है इसलिए उसके पास रोकडा पानी कम ही होता है। कीमत कम हो सके तो की जानी चाहिए। खैर हिन्दी पाठक सरोकारी भी होता है इसलिए खरीद ही लेगा। अंत में तहलका हिन्दी में उपलब्ध कराने के लिए तहलका टीम को धन्यवाद ..........................
हेमंत

Sunday, October 19, 2008

करोड़ों का सरकारी भुगतान नही किया निजी विमानन कंपनियों

हमारे देश में लोकतंत्र है। कानून की नजर में सब समान हैं। सभी को एक वोट देने का अधिकार है। सभी के लिए सरकार के एक ही नियम हें राजा हो या रंक। क्या सच में ऐसा है ? देश की सरकारी तेल कम्पनियाँ बार बार घाटे का हवाला देकर तेल की कीमत बढ़ातीं है या सब्सिडी समाप्त करने की बात करती हैं। क्या आपने किसी पैट्रोल पम्प पर जाकर कभी उधार तेल खरीदा है ? शायद नहीं। लेकिन हमारी तेल कंपनियाँ किंगफिशर जैसे कुछ लोगों कों बगैर भुगतान के ईंधन उपलब्ध कराती है।

घाटे में चल रही सार्वजनिक तेल कंपनियों को निजी विमानन कंपनियों ने १,१०,000 करोड़ उपाए का भुगतान करना है।

किंगफिशर ने ही ८३९ करोड़ रूपये भुगतान करना है।
इसमें इंडियन आयल का १०० करोड़ , हिन्दुस्तान पेट्रोलियम का ४५० करोड़ और भारत पेट्रोलियम का २८९ करोड़ का बकाया शामिल है ।
jet एयरवेज ने ४४६ करोड़ रूपये भुगतान करना है।

इससे अनुमान लगाया जा सकता है की हमारे सार्वजनिक संस्थान घाटे में क्यों जा रहे हैं।

जैसा की ये कम्पनियाँ अब घाटे का रोना रो रही हैं कहा जा सकता है की सरकार इनकी ये बकाया राशिः माफ़ कर देगी। है न शर्मनाक तथ्य। क्या लोकतंत्र में कुछ लोगों को विशेषाधिकार प्राप्त होना चाहिए । आप कहेंगे नही पर ऐसा हो क्यों रहा है ?

Thursday, October 16, 2008

........लेकिन धनी भिखारी बड़े कंजूस होते है।

छंटनी ........ छंटनी .....
एयरलाइंस में यात्रा करते सवारियों को मुस्कराकर लजीज व्यंजन परोसने वाली एयरहोसतेजस के मुरझाये हुए हुए चेहरे आज सभी समाचार पत्रों में प्राकशित हैं। इनके चेहोरो पर मजबूत भारतीय अर्थव्यस्था का प्रतिबिम्ब स्पष्ट दिखायी दे रहा है। २०२० तक विकसित भारत का सपना देख रही इन सैकडों बालाओं को कल जेट एयरवेज ने कह दिया की ''अब आप हमारी कंपनी के लिए अतिरिक्त जनसँख्या हैं''कंपनी के मालिक नरेश गोयल हाल ही में किंगफिशर के मालिक और राज्यसभा संसद विजय माल्या जी के दोस्त बने है। यहाँ में माल्या जी का नाम इसलिए घसीट रहा हूँ क्योंकि में उन्हें हमेशा ही सुंदर - सुंदर बालाओं के साथ चित्र खिंचाते हुए देखता हूँ लेकिन आज उनके ही उद्योग से जुड़ीं लड़कियों के इर्दगिर्द नही दिखाई दिए। बल्कि गोयल जी ने माल्या जी से दोस्ती करते ही सैकडों लोगों को रोजगार से निकाल दिया।
अब सीधे - सीधे पते की बात पर आया जाए। जेट ने १९०० कर्मचारियों को नोकरी से निकाल दिया है। हाल ही में किंगफिशर ने भी ३०० कर्मचारियों को नोकरी से निकाला था। कंपनी का कहना है की मंदी के कारण उसे ऐसा फ़ैसला लेना पड़ रहा है। जैसा की आप लोग जानते है हमारे देश के उद्योगपति एक किस्म के समाज सेवक भी हैं समाज सेवक होने के नाते उनका कहना है की शेष १११०० कर्मचारियों की नोकरी बचाने के लिए हमने ऐसा किया। कितनी चिंता है इनको लोगों की ! संकट में भी कर्मचारियों का खियाल ! दूसरी और नागरिक उड्डयन मंत्री जो जनता के वोटों से चुने गए इस छटनी पर हक्षतेप करने से साफ़ इनकार कर दिया है। साथ में नरेश गोयल जी और विजय माल्या जी को संकट से उभारने के लिए ५००० करोड़ के बेलाउट का प्रस्ताव दे दिया है। कैसी विडम्बना है हमारे लोकतंत्र की।
खैर में अपनी बात पर आता हूँ । पहली बात तो सरकार को सीधे - सीधे छंटनी पर हक्षतेप करना चाहिए। यदि सरकार छंटनी रोकने में असफल होती है तो बेलआउट कर्मचारियों के लिए दिया जाना चाहिए। करमचारियों को पुनः रोजगार मिलने तक उनकी आजीविका की व्यस्था सरकार को करनी चाहिए। लेकिन सरकार उल्टा उन लोगों को रूपया दे रही है जो लोगों का रोजगार छीन रहे है और जिनके पास पहले से ही अरबों रूपया है। उद्योग जगत इस प्रस्ताव का स्वागत कर रहा है। कैसा दोगला है यह उद्योग जगत एक तरफ़ खुले बाजार और सरकार के हक्षतेप को कम करने की बात करता है दूसरी तरफ़ स्वयं के लिए सरकार से करोड़ों के आर्थिक पॅकेज की मांग समय - समय पर करता है। थोड़ी देर के लिए मान लिया जाए की एयरलाइंस घाटे में चल रहे हो लेकिन अन्य बिजनेस में तो ये पैसा ही पैसा कम रहे हैं। उदहारण के लिए माल्या जी लोगों को शराब पिला - पिला कर करोड़ों कमा रहे हैं। हाँ यदि अपने आकलन से ज्यादा कमाने पर इन्होने अपनी अतिरिक्त इनकम सरकार को दी होती तो इस पर सोचा जा सकता था। लेकिन धनी भिखारी बड़े कंजूस होते है। लोकतंत्र में हजारों लोगों की कीमत पर कुछ लोगों को बेलआउट देना शर्मनाक ही नही अक्षम्य अपराध है। इसलिए बेलआउट कंपनियों को नही आम लोगों को दिया जाना चाहिए। बेलआउट नरेश गोयल या विजय माल्या के लिए नही बल्कि उन एयरहोस्टेज के लिए दिया जाए जिन के मुरझाते चेहरे अखबार में प्रकाशित हैं ताकि उनकी मुस्कराहट वापस आ सके।
हेमंत

Thursday, October 9, 2008

चिदंबरम साहब का overconfidence

वैश्विक आर्थिक संकट और भारत
विश्व की महाशक्ति अमेरिका का आर्थिक संकट पुरी दुनिया को अपने आगोश में लेता जा रहा है। दुनिया भर के शेयर बाजार लगातार रसातल की और जा रहे हैं। विकसित देशों के बैंक सरकारी बैलआउट की संजीवनी के सहारे आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। इसके बावजूद देश के वित्त मंत्री पी चिदंबरम, वाणिज्य मंत्री कमल नाथ और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहूलवालिया ने भारतीय अर्थव्यस्था पर अडिग विश्वाश व्यक्त करते हुए कहा है की वैश्विक संकट का असर भारत पर नही पढेगा, शेयर बाजार में जल्द सुधार होगा।लेकीन इनका यह औवर्कांफिदैंस बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज पर कोई सकारात्मक प्रभाव नही डाल पाया। शेयर बाजार में गिरावट जारी रही और बाजार अपने दो वर्षों के न्यूनतम स्तर पर पहुँच गया यानी ११००० के अंक को छू गया स्थिति यह थी की बाजार से जुरे लोग तो इसके १०००० अंक तक पहुँचने का कयास लगाने लगे थे।
दूसरी और देश की प्रमुख कम्पनियाँ अपने आईपीओ लाने की योजना को स्थगित कर रही है। कई कंपनियों ने अपने उत्पादन को २० से २५ प्रतिशत तक कम कर दिया हैआई टी कम्पनिओं ने छंटनी शुरू कर दी हैजिस आई टी उद्योग के फलने फूलने के पीछे अजीज प्रेम जी और नारायण मूर्ती का लोहा माना जाता था, उनके रहते हुए ही इस सेक्टर में भारी तबाही की सम्भावना व्यक्त की जा रही है यानी इन दोनों की प्रतिभा की पो खुलने वाली हैये कम्पनियाय लीमन ब्रदर्स के साथ सालाना लगभग ७०० करोर का व्यवसाय करती थींफिक्की द्वारा किया गया अध्ययन स्पष्ट कहता है की ४४ प्रतिशा कंपनियों के मुनाफे में कमी आयेगीइससे भी महत्वपूर्ण बात यह की दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति बिल गेत्ट्स को यह कहना पढ़ा है की "वित्तीय संकट पूंजीवाद का अंत नही "। देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वयम फ्रांस और अमेरिका की यात्रा से वापस आने के बाद कहा था की "भारत भी इस संकट से अछूता नही रह सकता "। इसके बावजूद ये तीनों विद्वान भारत को इस संकट से बचा लेने का दावा कर रहे हैं। जबकि इसे १९२९ के बाद से सबसे बढ़ा संकट माना जा रहा है। जिसने पूरी दुनिया में तबाही मचाई थी। आज विश्व के देश और भी निकट आयें हैं। दुनिया को एक गाँव बनाने की कवायद शुरू (भूमंडलीकरण) होने के बाद यह सबसे बढ़ा आर्थिक संकट है। लेकिन इन विद्वानों का यह कहना की वैश्विक गाँव में आए तूफ़ान से हम बच जायेंगे हास्यास्पद है। ये कह रहे हैं हमारी अर्थव्यस्था मजबूत है जैसे की अमेरिका की अर्थव्यस्था बहुत कमजोर रही हो। शायद हम अमेरिका से ज्यादा मजबूत तो नही! इसलिए सपने बेचने के बजाय जमीन पर आकर देश को संकट से बचने का प्रयास कीजिये चिदंबरम साहब !

Wednesday, October 8, 2008

मैं उमेश जी और कॉम्मन मेन का आभारी हूँ.......

मुझे यह लिखते हुए बढ़ा हर्ष हो रहा है की मेरे पिछले पोस्ट "हिन्दुओं ने किया अपनी देवी से गैंग रैप" पर आए उमेश जी और कॉम्मन मेन के कमेन्ट ने मुझे सोचने की एक नयी द्रष्टि दी है। मैं सेकुलरिस्म और मानवीयता के चक्कर में अपना धर्म भूल गया था। खैर देर से ही सही मेरी आँखे खुली और इसमें कोई शक नही की इसका श्रेय इन दोनों महान विभूतियों को ही जाता है। जहाँ इसाई विदेशी धन से सीधे साधे, भोले भाले हिदुओं का धरम परिवर्तन कर रहे हैं वही मुस्लिम आतंकवादी हमारे राष्ट्र को बम ब्लास्ट कर kamjor कर रहे हैं। हमारी उदारता को इन लोगों ने हमारी कमजोरी मान लिया है। यही कारन है की पहले हमें मुस्लिमों ने फ़िर ब्रिटिश ईसाईयों ने गुलाम बनाया। कॉम्मन मेन ने सही ही याद दिलाया है की औरंगजेब ने कितने निर्दोष हिन्दुओं के सर काटे। यह याद कर के ही मेरा शरीर कांप रहा है। सोचो तब हमारे पूर्वजों ने कैसे दिन बिताये होंगे। आप दोनों सही कहते हैं हमें बदला लेना ही होगा भारत माता हमें पुकार रही है हमारे भगवान् हमारे पुकार रहे हैं बचाओ - बचाओ हिन्दुओं का अस्तित्व बचाओ हिन्दुओं के भगवान् का अस्तित्व बचाओ हम आज नही जागेतो आने वाली पीढी माफ़ नही करेगी।

बंधू आज से मैं भी आपके साथ हूँ। अब हम ब्याज सहित बदला चुकायेंगे। हाँ - हाँ चक्रब्रधी ब्याज सहित। इतिहास में हुए सारे अत्याचारों का हिसाब अब हमें चुका ही देना चाहिए। मैं कुछ और अत्याचार आपको याद दिलाना चाहूँगा, वैसे आप शायद जानते ही होंगे, फ़िर भी क्योंकि अत्याचारों का बदला लेने की आपकी मुहीम में भी अब शामिल हो ही चुका हूँ तो यह मेरा दायित्व बनता है। औरंगजेब तो हिन्दुस्तान में बहुत बाद में आया उससे पहले भी हमारा इतिहास रहा है। हिन्दुओं का गौरवमाय इतिहास। हाथों हाथ हमें यह भी निपटा देना चाहिए। में बात कर रहा हूँ दलितों और महिलाओं पर अत्याचार की। हमें बंगाल और राजस्थान में सती प्रथा के अंतर्गत जलाई गयी महिलाओं की सूची बनानी चाहिए। जितनी हिंदू महिलाएं जलाई गयीं अब हमें उतने ही हिंदू पुरुषों को jalaana चाहिए। हमें हिन्दुस्तान में हुए दलित अत्याचार की सूची बनानी चाहिए और जहाँ - जहाँ दलितों पर अत्याचार हुए वहां - वहां अब सवर्णों से बदला लेना चाहिए। जहाँ दलितों पर kore मारे गए अब वहां सवर्ण को मार कर जहाँ दलितों की हत्या की गयी .........शायद आप मेरी बात समझ गए होंगे। मेरे कहने का मतलब हमें बदला लेना पीछे से बिल्कुल पीछे से प्रारम्भ करना चाहिए। मुझे उम्मीद है इस सब में आप मेरा साथ अवस्य लेंगे मैं ऐसे पुन्य कार्य में जीवन भर आप के साथ हूँ। आप ने मेरे ब्लॉग पर कमेन्ट कर मेरा ज्ञान वर्धन किया मैं आपका बहुत - आभारी हूँ। आशा है आप आगे भी मुझे ज्ञान देते रहें।

Monday, October 6, 2008

हिन्दुओं ने किया अपनी देवी से गैंग रैप....

(उदारता की अनोखी मिशाल )

हिंदू धर्म दुनिया का सबसे उदार! और लचीला ! धर्म है। कट्टरता से इसका कोई नाता नहीं : अतिथि देवो भव: निति पर यह विशवाश करता है और इसका अन्तिम लक्ष्य ''बसुधैव कुतुम्कम है। आजकल हिंदू नवरात्री का त्यौहार मना रहे हैं। नवें दिन ९ कन्याओं को भोजन कराकर कन्या कुमारी पूजन किया जाएगा। चूँकि हिंदू स्त्री को देवी का रूप मानते हैं इसलिए उसकी पूजा अर्चना करना इनकी परम्परा रही है। चाहे वह कन्या पूजन के रूप में हो या पूर्व में विधवा स्त्री को जिन्दा जलाकर सीधे उसके दिवंगत पति के पास भेजने के रूप में।


नारी पूजन के मध्य हिन्दुओं की उदारता को प्रदशित करती एक ख़बर उरीशा से आयी है। उरीशा के बारगढ़ जिले में हिंदू दंगाइयों (भक्तों ) ने २० साल की एक लडकी से गैंग रैप कर उसे जिन्दा जलाकर मार डाला । ख़बर के अनुसार रजनी माझी नाम की एक लडकी चर्च संचालित अनाथालय में काम करती थी। २५ अगस्त को बजरंग बली के भक्तों के संगठन बजरंग दल और हिन्दुओं के संगठन विश्व हिंदू परिषद् (वी एच पी ) की अगुवाई में चर्च पर हमला किया गया। वहां एक लडकी मिली (पढ़ें देवी ) हिंदू दंगाइयों ने उसे इसाई समझकर उसके साथ गैंग रैप किया और जिन्दा जला दिया। इस प्रकार हिन्दुओं ने एक बार फ़िर अपनी उदारता का परिचय दिया। इस घटना पर धार्मिक विश्लेषकोंका कहना है की इसे हिन्दुओं में आ रही जाग्रति के रूप में देखा जाना चाहिए। हिंदू धीरे - धीरे जाग्रत हो रहें हैं और देश व् भारत माता के प्रति अपने क्रत्व्यों को समझ रहे हैं। हिन्दुओं को उनकी उदारता के कारण सदियों से दबाया गया लेकिन अब वे दिन प्रति दिन शक्तिशाली होते जा रहे आज उनके पास "हिंदू परमाणु बम" है। आज का हिंदू जाग रहा है और गर्व से नारा लगा रहा है " मुझे हिंदू होने पर गर्व है"

Wednesday, October 1, 2008

एक अरब लोग भूख से मरेंगे !

वैश्विक आर्थिक मंदी ने अपना असर तेजी से दिखाना प्रारम्भ कर दिया है। अमेरिका की बढ़ी - बढ़ी कम्पनियाँ धाराशायी हो रही हैं। विश्व के शेयर बाजार लगातार गिर रहे हैं। इस कारण से बाजार में निवेश करने वाले कई छोटे निवेशक आत्महत्या कर रहे हैं। यह संकट आने वाले समय में भयावह रूप लेने वाला है। इसी को व्यक्त करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ की सहस्राब्दी विकास लक्ष्य रिपोर्ट २००८ आयी है। रिपोर्ट में कहा गया है की विश्व में जारी संकट, खाद्य वस्तु और इंधन की आसमान छूती कीमतें आने वाले समय में १० करोड़ लोगों को गरीबी में धकेलेगी, १ अरब लोग भूख से मरेंगे और २ अरब लोग कुपोषण के शिकार होंगे। इसका सबसे बुरा असर अफ्रीका के उप सहारा क्षेत्रों और दक्षिणी एशिया में पढने वाला है।जहा की स्थिती पहले से ही दयनीय है। रिपोर्ट में विकाशशील देशों की स्थिती के कुछ बिन्दु ........
  1. एक चौथाई बच्चे औसत से कम भार के हैं
  2. पॉँच लाख माएं बच्चे को जन्म देने के दौरान मर जाती हैं।
  3. दक्षिण एशिया की आधी आबादी २.५ अरब लोग स्वच्छता सुविधाओं के आभाव में रह रहे हैं।
  4. एक तिहाई से अधिक आबादी झोपढ़पत्तियों में रहती हैं।

यह हैं एशिया की स्थिति जहाँ विश्व की तेजी से बढ़ती दो आर्थिक शक्तियां भारत और चीन हैं। इस आर्थिक विकास में गरीबी मिटाने के लिए कोई स्थान नही हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट में चिंता बढ़ाने वाली बात यह हैं की आर्थिक संकट से उसका गरीबी उन्मूलन का कार्यक्रम प्रभावित हो रहा हैं। जब इतनी बढ़ी संस्था गरीबी उन्मूलन का कार्यक्रम चलाने में सक्षम नही हैं तो निश्चित रूप से आने वाला समय रिपोर्ट के आकलन से भी भयावह हो सकता है।