Saturday, January 30, 2010

खाद्य सुरक्षा के लिए चुनौती बनता मांसाहार

इन दिनों दुनिया में बढ़ते भूखों की संख्या और खाद्य संकट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वाधिक चिंता का विषय बना हुआ है। इसकी कई वजहें गिनाई जा रही है। अनाज उत्पादन में कमी से लेकर अनाज का बढ़ता अखाद्य उपयोग तक। लेकिन खाद्य संकट व भूखमरी के लिए पशु उत्पादों (दूध से लेकर मांस तक) का बढ़ता उपभोग भी एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। जिसकी चर्चा कम ही हो रही है। विकसित देशों के बाद अब भारत व चीन जैसे विकासशील देशों में हो रही आर्थिक प्रगति से लोगों की आमदनी बढ़ रही है जिससे लोगों के खान पान की रूचियां तेजी से बदल रही हैं। दूध व दुग्ध उत्पादों से लेकर मांस की मांग में इजाफा हो रहा है। इनकी मांग के अनुपात में ही पशु पालन उद्योग फल-फूल रहा है और अनाज उत्पादन का बड़ा हिस्सा मनुष्य के भोजन में लगने के बजाय पशु पालन में पशु आहार के रूप में इस्तेमाल हो रहा है।



1961 में विश्व में मांस की कुल मांग 7 करोड़ टन थी। जो 2008 में चार गुना बढ़कर 28 करोड़ टन हो गई। इस दौरान प्रति व्यक्ति औसत मांस खपत दोगुनी हो गई। प्रति व्यक्ति अंडा और मछली उत्पादन भी दोगुना हो गया है। इस प्रकार खाद्य उत्पादन में पशु उत्पादों का हिस्सा 40 प्रतिशत के आसपास पंहुच गया है। भारत की बात करें तो देश में वर्तमान आर्थिक विकास दर के साथ प्रति व्यक्ति आय में 6 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है जिससे मांसाहार 9 प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ रहा है। एक अध्ययन के मुताबिक यदि विकासशील देशो की विकास दर 10 प्रतिशत रहती है तो पशु उत्पादों की मांग 16 प्रतिशत की दर से बढ़ती है। विशेषज्ञों का आंकलन है कि 2050 तक पशु उत्पादों की मांग दोगुने से ज्यादा हो जाएगी। आज ही अमेरिका में पैदा होने वाला 70 प्रतिशत से ज्यादा अनाज जानवरों को खिलाया जाता है और दुनिया की दो तिहाई जमीन पर पशु आहार पैदा किया जाता है।



स्पष्ट है कि आने वाले समय में अनाज का बड़ा हिस्सा जानवरों को खिलाया जाएगा। दरअसल प्रत्यक्ष अनाज खाने की तुलना में इसे जानवरों को खिलाकर मांस, अंडे या दूध तैयार करने में अनाज की ज्यादा खपत होती है। उदाहरण के लिए विकसित देशों में एक किलोग्राम गौमांस तैयार करने में 7 किलो अनाज लगता है। एक किग्रा सुअर मांस तैयार करने में 6.5 किलो अनाज लगता है जबकि 1 किग्रा अंडा या चिकन तैयार करने में 2..5 किग्रा अनाज लगता है। इसके अलावा प्रत्यक्ष रूप से अनाज के उपभोग की तुलना में मांस उपभोग से उर्जा और प्रोटीन भी कम मिलता है। एक किलो चिकन या अंडे के उपभोग से 1090 कैलोरी उर्जा और 259 ग्राम प्रोटीन प्राप्त होता है। जबकि एक किग्रा चिकन तैयार करने में लगे अनाज से 6900 कैलोरी उर्जा और 200 ग्राम पोट्रीन प्राप्त होता है। खासकर बड़े जानवरों का मांस खाना उर्जा और प्रोटीन के दृष्टि से अनाज की और भी ज्यादा फिजुलखर्ची है। एक किग्रा गोमांस से महज 1140 कैलोरी उर्जा और 226 ग्राम प्रोटीन प्राप्त होता है जबकि एक किग्रा गोमांस तैयार करने में लगे अनाज से 24150 कैलोरी उर्जा और 700 ग्राम प्रोटीन प्राप्त होता है।



इन तथ्यों से आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि मांसाहार भले ही प्रगति का सूचक हो लेकिन यह दुनिया में भूख मिटाने के प्रयासों के लिए कैसे चुनौती बन सकता है। लेकिन मांसाहार में कटौती की जाए तो यह लाखों भूखे लोगों का पेट भर सकता है। इसे और भी सरल रुप में इस तथ्या से समझा जा सकता है कि ब्राजील और अमेरिका में खाये जाने वाले गोमांस से बने एक पाउड के बर्गर में जितने अनाज का उपभोग होता है वह भारत के तीन लोगो का पूरा आहार है। एक अनुमान के मुताबिक मांस की खपत में महज 10 प्रतिशत की कटौती भूखमरी से मरने वाले 18 हजार बच्चों और 6 हजार वयस्कों को असमय मौत से बचा सकता है। इसके अलावा पशुआहार पैदा करने के लिए उपयोग होने वाली भूमि का उपयोग मनुष्य की जरूरत का अनाज उत्पादन के काम आएगा।






No comments: