Wednesday, January 20, 2010

तहलका लाया मकोका का मकड़जाल और हमारी बेशर्मी


तहलका का नया अंक (वर्ष 2 अंक 11) बाजार में गया है। अंक में मकोका परमकोका का मकड़जालशीर्षक से कवर स्टोरी है। इसे तैयार करने में तहलका ने 2 माह जांच पड़ताल की है। इसमें मकोका के षिकार 10 लोगो की व्यथा कथा है। स्टोरी में मुबई के पुलिस कमिष्नर डी. शिवानंदन का साक्षात्कार भी है जो दावा कर रहे हैं कि मकोका का कभी गलत इस्तेमाल नहीं हुआ। रिपोर्ट पढ़ने का बाद हकीकत सामने जाती है।

अंक में दिल को छू जाने वाली स्टोरी है इरोम शर्मिला पर शोमा चैधरी की रिपोर्ट जिसका शीर्षक हैषायद यह उन सब मांओ के दूध का कर्ज चुका रही है इस शीर्षक का कारण आपको रिपोर्ट के दो पेज पड़ने के बाद मिलेगा। जो यहां बताना उचित नहीं रहेगा। जिसे जानना दिलचस्प है। एक भाई और बहन के रिष्ते क्या हो सकते हैं। इसे इरोम और उसके भाई के रिष्ते से जाना सकता है। कवर पेज पर इस लेख का शीर्षक हैइरोम शर्मिला और हमारी बेशर्मी’ इस लेख की सबसे प्रभावित करने वाली लाइन है। ‘‘इरोम शर्मिला असीम हिंसा का उत्तर असीम शंाति से दे रही हैं।’‘
बेलाग लपेट में कबीर सुमन की साफगोई है। संजय दूबे का कालम एक महत्वपूर्ण सवाल को उठाता है। मतदान अनिवार्य करने वाले विधेयक को पारित करते समय सभी विधायक गुजरात की विधानसभा में उपस्थित नहीं थे।
इन दिनोंमें स्वपन दासगुप्ता का लेख पष्चिम बंगाल के राजनीतिक भविष्य पर विष्लेषण है। लेखक कमोवेष ममता बनर्जी को सिंहासन दे चुके हैं। लेख का शीर्षकसर्वहारा का प्रतिकारहै।
अपने कालम में प्रियदर्षन रुचिका मुददे पर मीडिया की सक्रियता की पीठ थपथपाते हुए उसकी सीमाएं बताते हैं। लेखक उन रुचिकाओं की याद दिला रहे हैं जिनके नाम भी मीडिया नहीं जानता या जानना नहीं चाहता। लेख की कुछ पंक्तियां ‘‘ जो कुछ असुविधाजनक लड़ाईयां हैं, जो कुछ लंबे समय तक लड़नी पड़ सकती हैं, जिनके लिए कुछ कीमत चुकानी पड़ सकती है, उनकी तरफ से मीडिया बड़ी आसानी से आंख मंूद लेता है......’’

और बहुत कुछ है अंक में ............................. अंतिम पेज में छपने वाली आपबीती आपको बताती है कि ‘‘एक ही बात है, अखबार बेचो चाहे लिखो’’

इस ब्लाग पर आगे से तहलका हिंदी के सभी अंकों के बारे में जानकारी दी जाएगी।

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