रासायनिक खाद और कीटनाशकों के उपयोग से की जाने वाली खेती की सीमाएं सामने आने लगी हैं। एक और बड़े पैमाने पर इनके प्रयोग के बावजूद भारत खाद्यान्न मामले में आत्मनिर्भर नहीं बन सका है दूसरी ओर ऐसी रिपोर्टे भी सामने आ रही हैं कि इन खाद्य पदार्थों को खाकर लोग नाना प्रकार की बीमारीयों के शिकार हो रहे हैं। एक अध्ययन में तो मां के दूध में भी खेती के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रासायनिक तत्व पाये जाने का मामला सामने आया है। इसके अलावा रासायनिक खाद व कीटनाशको की कीमते बढ़ने से कृषि लागत बढ रही है। और किसान कर्ज के जाल में फंस रहे है। परिणाम इतने दुखद हैं कि किसान आत्महत्या करने तक को मजबूर हो रहे हैं।
इन स्थितियों को देखते हुए आज कृषि में नए विकल्प तलाशे या अपनाए जा रहे हैं। इनमें से एक है जैविक खेती। भारत समेत विश्व स्तर पर जैविक खेती का प्रचलन बढ़ रहा है। अनेक स्वयंसेवी संगठन जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के काम में जुटे हुए हैं। आमतौर पर जैविक खेती को खर्चीला और बढ़ती आबादी के लिए भर पेट भोजन का इंतजाम करने में अक्षम माना जाता है। लेकिन हाल मे ंहुए कई प्रयोगों ने इस धारणा का खंडन किया है। देश में हुए विभिन्न ंप्रयोगों से यह परिणाम सामने आए है कि रासायनिक खाद का प्रयोग करने वाले क्षेत्रों में जैविक खेती प्रारंभ करने से पहले पहल उत्पादकता में कमी जरूर आती है लेकिन धीरे धीरे उत्पादकता बढ़ने लगती है। यहां रेखांकित करने वाला तथ्य यह है कि उत्पादन बढने के साथ ही लागत में कम से कम 15 प्रतिशत की कमी आती है।
देश में जैविक खेती पर काम करने वाली प्रमुख स्वयंसेवी संस्था नवधान्य के शोध भी प्रचलित मान्यताओं के विपरीत यह प्रमाणित करते हैं कि जैविक खेती उच्च उत्पादकता वाली होने के साथ पर्यावरण हितैषी है। नवधान्य का दावा है कि जैविक खेती केवल सुरक्षित, पोष्टिक और स्वादिष्ट भोजन का जरिया ही नहीं बल्कि पृथ्वी और किसानों को बचाने के साथ दुनिया में व्याप्त भूख व गरीबी की समस्या का एक मात्र समाधान है। स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ भारत सरकार ने भी जैविक खेती के महत्व को स्वीकार किया है। जैविक खेती को बढ़ाने के लिए 2003 में केंद्र सरकार द्वारा जैविक कृषि राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना की गई।
विभिन्न प्रयासों के फलस्वरूप देश में जैविक खेती का रकबा निरंतर बढ़ रहा है। 2008 में जैविक खेती का रकबा 8.65 लाख हेक्टेयर था जो कि 2009 मे करीब 40 प्रतिशत बढ़कर 12 लाख हेक्टेयर हो गया है। अनुमान है कि 2012 तक देश में 20 लाख हेक्टेयर भूमि पर जैविक खेती होने लगेगी। आज भारत में जैविक उत्पादों का 550 करोड़ का बाजार है। फिलहाल देश से प्रतिवर्ष 450 करोड़ रुपए के जैविक खाद्य पदार्थो का निर्यात किया जाता है। जो कि वैश्विक कारोबार का महज 0.2 प्रतिशत है। उम्मीद है कि जैविक खेती के रकबे के बढ़ने के साथ ही इसके निर्यात में भी वृद्धि होगी और 2012 तक भारत से करीबन 4500 करोड़ रुपऐ के जैविक खाद्यान्नों का निर्यात हो सकेगा।
Friday, January 8, 2010
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