
आखिरकार अमर सिंह ने समाजवादी पार्टी को हाषिये पर पंहुचाकर पार्टी छोड़ने की तैयारी कर ली है। गत सभी चुनाव में निराषाजनक प्रदर्षन करने और एक एक कर कई दिग्गज नेताओं के अमर सिंह से नाराजगी के बाद पार्टी छोड़ने के बाद इसकी पूरी संभावना बन ही रही थी कि या तो अमर खुद किनारा कर लेंगे या मुलायम सिंह उन्हैं आराम की सलाह दे देंगे।
इसलिए अमर सिंह का समाजवादी पार्टी छोड़ना किसी अचरज की बात नहीं है। बल्कि सपा के शुभचिंतकों के लिए यह अच्छी ही खबर है। हांलाकि, बेनी प्रसाद बर्मा, राजबब्बर, जैसे नेताओं के सपा में अब वापस आने की संभाावना कम है, परंतु आजम खान और शाहिद सिददकी जैसे कुछ ऐसे नेता हैं जो पार्टी में वापस आ सकते हैं। हां, सपा अमर सिंह के जाने के बाद अपना राष्ट्रीय चरित्र अवष्य खो सकती है।
पर किसी भी दल के लिए अपनी जड़ो से कटकर विकास करना संभव नहीं होता है। राजनीति के जानकारों को यह आषंका है कि इससे सपा को नुकसान हो सकता है। पर इसकी संभाावना कम ही नजर आती है। पहली वजह तो यह है कि अमर का कोई जनाधार नहीं था। दूसरा अमर सिंह ने सपा का चरित्र पूर्णतः बदल दिया था। हकीकत तो यह है कि अमर सिंह का सपा छोड़ना कांग्रेस और बसपा की परेषानी का सबब बन सकता है। क्योंकि अमर की गैर मौजुदगी में सपा अपने पूराने अंदाज में लौट सकती है।
मुलायम सिंह यूपी की राजनीति के ऐसे शख्स हैं जिनपर अल्पसंखयक सबसे ज्यादा विष्वास करते हैं। कल्याण से दोस्ती, न्यूक्लियर डील का समर्थन करना ऐसे निर्णय थे जिसने सपा से मुस्लिम समुदाय को अलग करने की प्रक्रिया शुरु की थी। कल्याण सिंह वाली गलती तो सपा ने सुधार ली है। न्यूक्लियर डील का समर्थन करने के पीछे अमर सिंह ज्यादा नजर आते हैं। कुल मिलाकर अमर सिंह का सपा से जाना एक मायने में सपा के हित में हो सकता है जबकि कांग्रेस व बसपा के लिए यह खतने की घंटी साबित हो सकता हैं।
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