खाघ संकट के लिए आमतौर पर कृषि उपज में कमी को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है। पर देश के किसानों ने इस बार दो फसलों आलू और गेहूं का पर्याप्त उत्पादन किया है। सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि किसानों की अथक मेहतन से तैयार फसल के सुरक्षित भंडारण की समुचित व्यवस्था देश में नहीं है। शीतगृहों के अभाव में आलू भंडारण संकट का मामला शांत भी नहीं हुआ था कि भारतीय खाघ निगम (एफसीआई) के पास गेहूं भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था न होने की बात सामने आ रही है। सही मायने में देश में भंडारगृहों और शीतगृहों की कमी का खामियाजा देश के किसानों को ही भुगतना पड़ता है। देश में बीते साल के 314 लाख टन की तुलना में इस साल 327 लाख टन आलू उत्पादन हुआ है। देश के किसान इस वक्त आलू के दाम अच्छे न मिलने के कारण नवम्बर तक आलू शीतगृहों में रखते हैं। लेकिन सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में शीतगृहों की संख्या 5400 है, जिनकी क्षमता महज 240 लाख टन भंडारण की है। इनमें सर्वाधिक शीतगृह उत्तर प्रदेश में हैं। इनकी क्षमता भी 97 लाख टन है जबकि राज्य में 125 लाख टन आलू की पैदावार हुई है। इसी प्रकार दूसरे सबसे बड़े आलू उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल में महज 402 शीतगृह हैं। ये गत वर्ष उत्पादित 52 लाख टन आलू के लिए भी पर्याप्त नहीं थे जबकि इस साल आलू उत्पादन करीब 100 लाख टन है। भंडारण के अभाव में आलू उत्पादक कौड़ियों के भाव आलू बेचने को मजबूर हुए। किसानों को देश के कुछ इलाकों में तो आलू का भाव एक रूपए प्रति किलो से भी कम मिला। कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) के अनुसार पश्चिम बंगाल में 2.80 रूपए और उत्तर प्रदेश में 3.10 रूपए प्रति किलो आलू है। यह भाव भी आलू उत्पादन में लगने वाली औसत लागत से कम है। देश में प्रति किलो आलू उत्पादन की लागत 3.50 रूपए आती है। आलू उत्पादकों का संकट अभी टला भी नहीं था कि अब यही कहानी गेहूं उत्पादकों के साथ दोहराई जा रही है। गौरतलब है कि इस बार देश में गेहूं की पैदावार अच्छी होने का अनुमान है। गेहूं एक अप्रैल से ही मंडियों में बिकने के लिए आने लगा है। गेहूं उत्पादक अधिकांश राज्यों में किसानों को मंडियों में गेहूं खरीद के लिए इंतजार करना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश में सरकारी खरीद का सही प्रबंध न होने के कारण राज्य के किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे गेहूं बेचने को मजबूर हैं। प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य हरियाणा व पंजाब में भारी मात्रा में गेहूं खरीदने वाली कारगिल, अदानी और आइटीसी जैसी बड़ी कम्पनियों ने इस बार हाथ पीछे खींच लिए हैं। इन राज्यों के मिल मालिक उत्तर प्रदेश से गेहूं खरीद रहे हैं। नतीजन, किसानों को पूरा गेहूं सरकारी एजेंसियों को ही बेचना होगा। दोनों राज्यों का 185 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य है। लेकिन इन राज्यों में भंडारण की क्षमता महज 125 लाख टन की है। ऐसे में 60 लाख टन गेहूं कहां रखा जाएगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है। मध्यप्रदेश में 45 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा गया है जबकि राज्य में भंडारण व्यवस्था महज 23.9 लाख टन की है। राजस्थान की पिछले साल के 10 लाख टन गेहूं खरीद की तुलना में इस सीजन में 7 लाख टन गेहूं खरीदने की योजना है। यहां भी गेहूं भंडारण के लिए सरकार निजी क्षेत्र के गोदामों को किराए पर ले रही है। ऐसे में चालू सीजन में देश भर में 262.67 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य पूरा होने पर यह कहां रखा जाएगा यह चिंता का विषय है। तय है कि सरकारी एजेंसियां खरीद भी लेती हैं तो यह गेहूं आम आदमी तक पहुंचने की बजाए खुले आसमान के नीचे सड़ेगा। देश को अनाज, फल व सब्जियां सुरक्षित रखने के लिए बड़े पैमाने पर भंडारगृहों और शीतगृहों की आवश्यकता है। इस समय एफसीआई की कुल भंडारण क्षमता 284.50 लाख टन मात्र है। हाल में एफसीआई ने आगामी डेढ़ साल में अनाज भंडारण क्षमता 126 लाख टन बढ़ाने की योजना बनाई है। हांलाकि इसके बाद भी भंडारण की व्यवस्था पूरी नहीं हो पाएगी। फिक्की के एक आकलन के मुताबिक शीतगृहों की कमी से देश में 30 ये 35 प्रतिशत यानी 600 लाख टन फल-सब्जियां प्रतिवर्ष बर्बाद हो जाती हैं, जिनकी कीमत करीब 58,000 करोड़ रूपये बैठती है। एक अन्य आकलन के मुताबिक उत्पादन के बाद आम उपभोक्ता के पास पहुंचने तक देश में ढुलाई और भंडारण की उचित व्यवस्था के अभाव में 30 प्रतिशत से अधिक अनाज बर्बाद हो जाता है। दुनिया में सर्वाधिक भूखों वाले देश में इतना अनाज बर्बाद हो जाना गंभीर अपराध नहीं तो और क्या है!
Friday, April 30, 2010
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