एबीवीपी ने शालीनता की सारी सीमाओं को ताक पर रख दिया है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्रों ने बृहस्पतिवार को दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रो। एसएआर गिलानी पर अपना गुस्सा निकाला। एक छात्र ने प्रोफेसर गिलानी पर सरेआम थूक दिया।
जाकिर हुसैन कॉलेज के प्रोफेसर एसएआर गिलानी के साथ हुई बदसलूकी और उसके बाद एबीवीपी के कार्यकर्ताओं का जमकर प्रदर्शन हुआ। कुछ ही देर में कैंपस छावनी में तब्दील हो गया। मीडिया को देखते ही आनन-फानन में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हटाना शुरू किया और डूसू अध्यक्ष नुपूर शर्मा समेत 15 एबीवीपी कार्यकर्ताओँ को हिरासत में ले लिया गया।
दरअसल प्रोफेसर गिलानी आर्ट्स फैक्लटी में एक बैठक में हिस्सा लेने आए थे, जिसमें सांप्रदायिकता और लोकतंत्र जैसे मुद्दों पर चर्चा की जानी थी। इस बैठक में बटला हाउस और मालेगांव जैसे कई मुद्दों को भी उठाया जाना था, जिसका विरोध एबीवीपी पहले से ही कर रही थी।
एबीवीपी का इतिहास दागदार रहा है। उज्जैन में प्रोफेसर सब्बरवाल की हत्या का मामला इसकी एक मिसाल पर है। दिल्ली विश्वविद्यालय का माहौल इस घटना की वजह से तनावपूर्ण है, लेकिन एबीवीपी अपनी गलती नहीं मान रही। आज इसे लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय में कुछ दूसरे छात्र संगठन विरोध प्रदर्शन भी करने जा रहे हैं।
स्रोत: NDTV
9 comments:
बेहद शर्मनाक...
"…एबीवीपी का इतिहास दागदार रहा है…" एनडीटीवी की जबान पवित्र है, गिलानी, दिल्ली विश्वविद्यालय और जामिया का इतिहास तो बहुत चमकदार है??? जय हो… बाय द वे, यह ब्लॉग है या एनडीटीवी की खबर जस का तस छापने की जगह?
गिलानी का परिचय भी लिख देते तो अच्छा था.
Sharmnak hai aakhir Gilani ko Supreme court clean chit de chuka he. Court ke usi nirnay ko aadhar banakar ye log Afjal ko fansi dene ki mang kar rahe hain. Inka doglapan kabhi jayega nahi.
संघ के किसी पर्चे में ऐसा लिखा हो तो अवश्य दिखायें, गिलानी अपने को भारतीय मानता ही नहीं, जिस आदमी पर देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिये, वह मौज कर रहा है.
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्र राष्टीय भावनाओ से ओतप्रोत है जरुरत है
देश के हर नौजवान को आगे आने की और गिलानी जैसे देशद्रोह के अपराधी को
इसी प्रकार की भाषा समझाई जाय.
किसी के मुंह पर थूकना बाकई बहुत ग़लत बात है. पर एक बात समझ नहीं आई कि दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिकारिओं ने ऐसी मीटिंग करने की इजाजत क्यों दी. शिक्षा संस्थानों का इस तरह दुरूपयोग भी बहुत ग़लत है. जामिया के वाइस-चांसलर तो शिक्षा संस्थान का वेजा इस्तेमाल कर रहे हैं. अभी उन्होंने नसीर और शबाना को डाक्टर की उपाधि देते समय ऐसी ही बातें कहीं जो इस मीटिंग में कही गई. किसी ने मुझे एक पर्च दिखाया जो इस मीटिंग में बांटा गया. खूब जम के गालियाँ दी गई हैं, आरएसएस और अन्य संगठनों को.
क्या परिचय नहीं मिला मित्रों को ?
जीलानी मेरे कॉलेज में अरबी पढ़ाते हैं...आपकी राय उनसे नहीं मिलती... पर वो तो शायद आपकी मुझसे भी नहीं मिलती होगी। इसलिए आप मुझे मिटा देने की वकालत करेंगे !
इस सेमिनार की अनुमति क्यों नहीं दी जानी चाहिए थ्सी ये समझ नहंी आ रहा.. न तो सेमिनार के विषय में ऐसा कुछ है कि अनुमान हो कि किसी को हिंसा का मौका मिलेगा न ही वक्ताओं में कुछ ऐसा था।
बाकी रहा जीलानी के शामिल होने की बात..तो आप भूल रहे हैं कि वे इस विश्वविद्यालय के अध्यापक हैं...हमारे यहॉं प्रति सप्ताह 18 कक्षाएं लेते हैं..सिर्फ उनकी हिस्सेदारी से कोई कार्यक्रम नाकाबिले इजाजत कैसे हो गया।
दरअसल असहमति को लेकर हमारी सहिष्णुता रसातल में पहुँच चुकी है।
जो लोग शिक्षण संस्थाओं के बारे में कुछ जानते होंगे वो बता सकते हैं कि अच्छी जगहों पर ऐसे विचार विमर्श के कार्यक्रम चलते रहते हैं और इसमे कुछ ग़लत नही है
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