बराक ओबामा अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं। ओबामा को बधाई। आज के भारतीय समाचार पत्र इस ख़बर से पटे हैं। अख़बारों को पढ़कर यह लग रहा है की जैसे ओबामा अमेरिका के नही भारत के राष्ट्रपति चुने गए हों। वैसे एक हिसाब से देश का अंग्रेजी बोलने वाला इलीट भारत से ज्यादा अमेरिका में रूचि लेता है रहता भारत में है सपने देखता है अमेरिका में रहने के। इसी की अभिव्यक्ति हैं आज के समाचार पत्र। बेन्नेट कोलमन समूह के अख़बारों का पहला पेज तो ओबामा को ही समर्पित किया गया है। कुछ लोग कह सकते हैं अश्वेत के चुने जाने के करण यह भारत के लिए भी महत्वपूर्ण है। हकीकत यह नही है जब ओबामा नही चुने गए थे यानि चुनाव के दौरान भी अख़बारों टी वी चैनल्स ने अमेरिकी चुनाव की जम कर कवरेज़ की। हकीकत अश्वेत से प्यार करना होती तो हमारे देश का बड़ा हिस्सा आंबेडकर को भुला चुका होता? दलितों से एम्स जैसे संस्थानों में कैसा व्यव्हार होता है यह पुरा देश जानता है। एक अख़बार ने लिखा है ओबामा गाँधी के मुरीद हैं॥ क्या अब ओबामा इराक और अफगानिस्तान में सत्याग्रह करेंगे ? क्या वे अब ओसामा बिन लादेन का ह्रदय परिवर्तन करने का प्रयास करेंगे ? निश्चित रूप से नही फ़िर कैसे गाँधी वादी हैं ओबामा ? सच तो यह है की ओबामा गाँधी के नही हम अमेरिका के मुरीद हो चुके हैं.........
Wednesday, November 5, 2008
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2 comments:
बिल्कुल सही.
अगर इतने लोग ओबामा की विजय से खुश हैं तो उसमें कुछ ख़ास ज़रूर है - आप देखना न चाहें तो कोई बात नहीं - दुनिया अपने तरीके से ही चलेगी.
क्या गांधी के मुरीद को सत्याग्रह करने के लिए ईराक और अफगानिस्तान ही बचे हैं? तालेबान और सद्दाम हुसैन जैसे वहशी हत्यारों से छुटकारा पाना ही काफी नहीं है, उनके बचे हुए चापलूसों से मुक्ति भी ज़रूरी है.
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