Wednesday, December 30, 2009

युद्धजनित तनाव में अमेरिकी सैनिक...................आत्महत्या का आंकड़ा २०० के पार

हाल के दो घटनाक्रमों से पता चलता है कि विदेशी जमीन पर युद्ध लड़ते हुए अमेरिकी सैनिक किस कदर दबाव में हैं। पहला, 30 हजार अतिरिक्त सैनिक अफगानिस्तान भेजने के निर्णय को साार्वजनिक करते समय अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को यह भी बताना पड़ा कि 18 माह उपरांत सैनिकों की घर वापसी शुरू हो जाएगी। दूसरा, कुछ समय पहले ही एक अमेरिकी मेजर ने अपने 13 साथियों को अपनी ही गोलियों से मार डाला था। बताया जाता है कि उसकी तैनाती अफगानिस्तान में होने वाली थी। तैनाती की जानकारी मिलने के बाद से ही मेजर अवसाद में था। दरअसल अमेरिका द्वारा इराक व अफगानिस्तान में चलाए जा रहे अंतहीन युद्ध का दबाव अमेरिकी सैनिकों पर युद्ध के मैदान और घरेलू मोर्चे पर दोनों जगह देखा जा रहा है।

एक ओर इराक व अफगानिस्तान में तैनात सैनिकों में नशा करने की प्रवृत्ति बढ़ने के समाचार पहले से ही सामने आते रहे हैं दूसरी ओर अमेरिकी सेना में आत्महत्या के मामले साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं। अमेरिकी सेना द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि गत कुछ सालों में सैनिकों में आत्महत्या करने के प्रयासों और उससे मरने वाले सैनिकों की संख्या में निरंतर इजाफा हो रहा है। इस वर्ष यह आंकडा 200 के पार पहंुच गया है। 31 अक्टूबर तक 211 सैनिकों ने आत्महत्या करके मौत को गले लगा लिया जबकि 2008 में इस तरह 197 सैनिकों ने अपनी जान दे दी थी। उल्लेखनीय है कि तकरीबन 11 लाख सैनिकों वाली अमेरिकी सेना ने 1980 से आत्महत्या के आंकड़े की जानकारी रखना प्रारम्भ किया था। 2009 का आंकड़ा अभी तक का सर्वाधिक है। 2003 में 79, 2004 में 67, 2005 में 85, 2006 में 102 और 2007 में 115 सैनिकों ने आत्महत्या की थी।


हांलाकि, सेना अफगानिस्तान व इराक में तैनाती और आत्महत्या के बीच किसी भी प्रकार के संबंध से इंकार करती आई है, लेकिन जानकार मानते हैं कि आत्महत्या की प्रमुख वजह युद्ध जनित तनाव ही है। गौर करने वाली बात यह है कि सेना के ही मुताबिक 41.8 प्रतिशत सैनिक पहली तैनाती के बाद ही ऐसा कदम उठा लेते हैं जबकि 10.3 प्रतिशत सैनिक दो बार तैनाती के बाद 1.7 प्रतिशत सैनिक तीन बार तैनाती के बाद और करीब एक प्रतिशत चार बार तैनाती के बाद अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं। सेना में आत्महत्या का अनुपात प्रति लाख सैनिकों पर 20 पहुंच गया है जो देश के राष्ट्रीय औसत से अधिक है। कुल आबादी में यह अनुपात प्रति लाख पर 19 का है। इन आठ सालों में आत्महत्या से मरने वालों की संख्या अफगानिस्तान में युद्ध में अब तक कुल मारे गए सैनिकों से ज्यादा है। प्रतिदिन औसतन 5 सैनिक आत्महत्या का प्रयास करते हैं।

आत्महत्या के निरंतर बढ़ते मामलों से चिंतित अमेरिकी सेना एक और सेना में मनोचिकित्सों की संख्या बढ़ा रही है दूसरी और ‘नेशनल इनसटिट्यूट आॅफ मेंटल हैल्थ’ के साथ मिलकर आत्महत्या की वजहों को जानने के लिए एक विस्तृत अध्ययन भी कर रही है। यहां यह बताते चलें कि इराक और अफगानिस्तान में अपनी सेवा देने के बाद सेवानिवृत हुए सैनिकों में भी आत्महत्या के मामले सामने आ रहे हैं। हांलाकि, भूतपूर्व सैनिकों के आत्महत्या के अधिकारिक रिकार्ड अमेरिका में नहीं रखे जाते है, लेकिन स्वतंत्र अध्ययन बताते हैं कि इनकी संख्या सेवारत सैनिकों से भी ज्यादा हो सकती है।


न्यूयार्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक इराक में तैनात अमेरिकी सैनिकों और स्थानीय सेना में नशा करने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ती जा रही है। 2003 के बाद इराक के मेडिकल स्टोरों में ‘अर्टेन’ नामक दवा की बिक्री एकाएक बढ़ गई है। यहां तक की इस दवा की काला बाजारी भी जोरों पर है। यह दवा सैनिकों को दबाव में राहत देती है। माना जाता है कि दवा सैनिकों को साहसी और बहादुर बनाती है। खासकर सैनिक इस दवा को उपयोग तब करते है जब किसी के घर में छापा मारना होता है क्योंकि इस दवा को लेने के बाद सैनिक बेझिझक किसी का भी दरवाजा तोड़ कर अंदर घूस जाते हैं। कुछ सर्वे में पाया गया है कि तीन में से एक सैनिक इस दवा का सेवन कर रहा है।


इसके अलावा अन्य भी वजहें हैं जो सेना के लिए चिंता का विषय हैं जैसे सैनिकों के परिजनों का युद्ध का विरोध और कई सैनिकों का सेना को छोड़ देना इत्यादि। अमेरिकी सेना ने अतीत में विदेशी जमीन पर युद्ध लड़ते हुए इससे भी बुरे दिन देखे हैं। वियतनाम युद्ध के दौरान कई सैनिकों युद्ध के मैदान से भाग गये थे। अमेरिका के सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि 1968 में ही 53000 हजार सैनिक भागे थे। 70 के दशक में ऐसी घटनाएं हुई थी जब सिपाहियों की पूरी की पूरी टुकड़ी ने आदेश मानने से इंकार कर दिया था। अतीत के यह अनुभव अमेरिका की चिंता केा ओर बढ़ा देते हैं यही वजह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति को देशवासियों को बारबार यह बताते रहना पड़ता है कि सेना की वतन वापसी जल्द ही होगी ।

1 comment:

Udan Tashtari said...

तनावपूर्ण तो निश्चित है!!


यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी