Tuesday, March 23, 2010
दूषित होता जल, खतरे में हमारा कल
जल इंसान की ऐसी बुनयादी जरूरत है, जिसके बिना मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन सिर्फ जल होना ही पर्याप्त नहीं है। इसका स्वच्छ होना भी स्वस्थ जीवन के लिए जरूरी है। पर चिंता का विषय यह है कि विश्व स्तर पर जल निरंतर दूषित होता जा रहा है। दुनिया की बहुत बड़ी आबादी को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं हो पाता है। स्वच्छ जल के अभाव में पानीजन्य रोगों से पीडि़त लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, जिस कारण लाखों लोग असमय मौत का शिकार हो जाते हैं। दुनिया में सफाई की समुचित व्यवस्था का अभाव इस संकट को और जटिल बना रहा है। अंधाधुध अव्यस्थित विकास परियोजनाएं जल के प्रमुख स्रोत नदियों की अविकल धारा को बाधित कर रहे हैं। 22 मार्च (विश्व जल दिवस) के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय जल परिषद द्वारा जारी एक रिपोर्ट इन पहलुओं पर विस्तार से रोशनी डालती है। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रतिदिन 20 लाख टन नालों में बहने वाला मल और औद्योगिक व कृषि कचरा पानी में मिल जाता है। इसकी मुख्य वजह है सफाई की अपर्याप्त व्यवस्था। दुनिया में 2.5 अरब लोग अपर्याप्त सफाई में रहते हैं। इसके 70 प्रतिशत यानी 1.8 अरब लोग एशिया में हैं। सब सहारा अफ्रीका में 31 प्रतिशत परिवारों के पास ही सफाई के साधन हैं। यहां सफाई सुधार की गति भी काफी धीमी है। दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी यानी लगभग 1.2 अरब लोग खुले में शोच करते हैं। ग्रामीण इलाकों में यह अनुपात 3 में एक का है। दक्षिण एशिया में ऐसे लोगों की ग्रामीण आबादी 63 प्रतिशत है। औद्योगिकरण, खनन और इंफ्रास्ट्रक्चर भी पानी को बेतरतीब दूषित कर रहा है। विकासशील देशों में 70 प्रतिशत असंसाधित औद्योगिक कचरा पेयजल में घुल कर लोगों के घरों में पहुंच जाता है। नदियां पानी का सबसे बड़ा स्त्रोत हैं। कल कारखानों से बहता रसायन इन्हें भारी मात्रा में दूषित कर रहा है। खनन कार्य से भी नदियां दूषित हो रही हैं। अमेरिका के अकेले एक प्रांत में खनन के बाद छोड़ दी गई 23,000 खानों के कारण वहां बहने वाली छोटी-बड़ी नदियों का 2300 किमी का जल प्रदूषित हो गया है। दुनिया में विकास के नाम पर बनने वाली बड़ी परियोजनाओं का शिकार भी पानी हो रहा है। बांधों व अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं ने विश्व की सबसे बड़ी 227 नदियों की धाराओं को बाधित किया है, जो कि कुल नदियों का 60 प्रतिशत है। दूषित जल का सीधा प्रभाव मानव जीवन पर पड़ रहा है। पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मौत का सर्वाधिक जिम्मेदार दूषित जल ही है। दुनिया में होने वाली कुल मौतों में 3.1 प्रतिशत मौतें अस्वच्छ जल और सफाई के अभाव के कारण ही होती हैं। जल के कारण प्रति वर्ष 4 अरब डायरिया के मामले सामने आते हैं। परिणामस्वरूप 22 लाख लोग प्रतिवर्ष मौत के गाल में समा जाते हैं, जिसमें अधिकांश संख्या पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की होती है। रिपोर्ट के मुताबिक 15 प्रतिशत बच्चे डायरिया के कारण असमय मौत का शिकार हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में हर 15 सेकंड में एक बच्चा दूषित जल का शिकार होता है। भारत में भी बच्चों के खराब स्वास्थ और असमय मौतों का कारण भी डायरिया ही है। इससे भारत में प्रतिवर्ष तकरीबन 5 लाख बच्चे मारे जाते हैं। दरअसल, हमारी पृथ्वी पर 1.4 अरब घन किलो लीटर पानी है। 97.5 प्रतिशत पानी में समुद्र में है, जो खारा है। कुछ पानी बर्फ के रूप में है। महज एक प्रतिशत पानी ही पीने योग्य है। इसमें से भी एक बड़ा हिस्सा कृषि कार्यो में खप जाता है। कुल एक प्रतिशत पानी से ही दुनिया की पूरी आबादी के लिए पानी की व्यवस्था करनी है। यदि यह भी दूषित होता रहा तो आगामी परिणाम भयावह होंगे। जल जिस गति से दूषित हो रहा है, उतना ही अधिक समय संयुक्त राष्ट्र के सहश्राब्दी विकास लक्ष्य में सबको जल उपलब्ध कराने के निर्धारित लक्ष्य में पड़ेगा। इसमें अधिक समय लगेगा या समय पर उपलब्ध कराने में लागत बढ़ जाएगी। फिलहाल वर्ष 2015 तक सभी को स्वच्छ जल उपलब्ध कराने में 7,500 लाख अमेरिकी डालर व्यय होने का आंकलन है। यदि स्वच्छ जल की निर्बाध आपूर्ति हो तो विकास गति बढ़ जाती है। गरीब व अविकसित देशों में इस पर एक अध्ययन भी किया गया है। अध्ययन के मुताबिक जिन इलाकों में स्वच्छ जल व सफाई की समुचित व्यवस्था थी, वहां वार्षिक विकास दर 3.7 प्रतिशत थी, जबकि इसके अभाव वाले इलाकों में वार्षिक विकास दर महज 0.1 प्रतिशत थी।
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