Saturday, December 19, 2009

भगवान् कहिये या खुदा फर्क तो पड़ता है

आज ऑनलाइन होते ही एक मित्र से चेट होने लगामैंने मजाकिया मूड में लिखा
फरमाइए
रिप्लाई आया: खेरियत हैआप ?
मैंने कहा : दुआ है आपकी
हमारी क्या दया होती है दया तो ऊपर वाले की है
ऊपर वाला कौन ?
भगवान्
भगवान् या खुदा
एक ही बात है
फिर क्या था मैंने भी कहा कैसे मंदिर की जगह कभी मस्जिद या चर्च चले जाते हो क्या ?
जवाब आया : नहीं
मैंने भी कहा : तो खुदा, भगवान् एक ही कैसे हो गए?
मित्र झल्ला गए बोले सुबह - सुबह चाटने को कोई नहीं मिला क्या ?
मैंने कहा आप सवाल के जवाब से बच रहे हैंबात एक ही है तो कभी चर्च चले जाया करो कभी गुरुद्वारा कभी .... ।


ऐसा क्यों होता है की हम बोलने को तो बोल देते हैं एक ही बात है व्यवहार में ऐसा नही होताक्या आप भी कहते हैं एक ही बात हैलेकिन कुछ भी कह दीजिये भगवान् कहिये या खुदा फर्क तो पड़ता है
बकबक समाप्त

1 comment:

अजय कुमार झा said...

हां ,आपने कही तो बिल्कुल प्रायोगिक बात है ..हालांकि मैं मंदिर और गुरुद्वारे तो काफ़ी जाता रहता हूं और एक आध बार मस्जिद भी गया हूं ..मगर इंसान आदतन अपने धर्म स्थलों में ही जाता है