आज ऑनलाइन होते ही एक मित्र से चेट होने लगा। मैंने मजाकिया मूड में लिखा
फरमाइए
रिप्लाई आया: खेरियत है। आप ?
मैंने कहा : दुआ है आपकी
हमारी क्या दया होती है दया तो ऊपर वाले की है ।
ऊपर वाला कौन ?
भगवान्
भगवान् या खुदा
एक ही बात है ।
फिर क्या था मैंने भी कहा कैसे मंदिर की जगह कभी मस्जिद या चर्च चले जाते हो क्या ?
जवाब आया : नहीं
मैंने भी कहा : तो खुदा, भगवान् एक ही कैसे हो गए?
मित्र झल्ला गए बोले सुबह - सुबह चाटने को कोई नहीं मिला क्या ?
मैंने कहा आप सवाल के जवाब से बच रहे हैं। बात एक ही है तो कभी चर्च चले जाया करो कभी गुरुद्वारा कभी .... ।
ऐसा क्यों होता है की हम बोलने को तो बोल देते हैं एक ही बात है व्यवहार में ऐसा नही होता । क्या आप भी कहते हैं एक ही बात है । लेकिन कुछ भी कह दीजिये भगवान् कहिये या खुदा फर्क तो पड़ता है ।
बकबक समाप्त ।
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1 comment:
हां ,आपने कही तो बिल्कुल प्रायोगिक बात है ..हालांकि मैं मंदिर और गुरुद्वारे तो काफ़ी जाता रहता हूं और एक आध बार मस्जिद भी गया हूं ..मगर इंसान आदतन अपने धर्म स्थलों में ही जाता है
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