Wednesday, February 3, 2010

पहले उत्तर भारतीय व मराठी हिंदुओं ने मिलकर मुसलमानों को मारा, अब मराठी हिंदु उत्तर भारतीय हिंदुओं को भगा रहे हैं।

तकरीबन दो सालों से मराठी मुददे को लेकर राजनीति गर्म है। एक ठाकरे परिवार ने उत्तर भारतीयों पर निशाना साधा है। ठाकरे परिवार उत्तर भारतीयों या कहें हिंदी भाषियों के खिलाफ वैसे ही आक्रामक हैं जैसे एक दौर में मुसलमानों के खिलाफ था। अभी भी वह दौर कोई नहीं भूला है जब मुसलमानों के खिलाफ आक्रमकता के कारण बाल ठाकरे उत्तर भारत में कितने पोपुलर होते जा रहे थे।



इस मसले पर मेरे आफिस में भी चर्चा आमतौर पर होती रहती है। उसकी वजह है कुछ मित्रों का बिहार का होना। मेरे बिहार के मित्र ठाकरे परिवार से खार खाए रहते हैं। मुझसे भी चर्चा करते रहते हैं। ये मित्र मुसलमानों से बेइंतहा घृणा करते हैं शायद जितनी ठाकरे बिहारियों से भी न करते हों। ऐसी चर्चा पर मैं न चाह कर भी ठाकरे के समर्थन में नजर आता हूं। मेरा जवाब मेरे स्वभाव के विपरीत रहता है। मैं उनसे एक बात कहते रहता हूं। पहले मराठी हिंदुओं और उत्तर भारतीय हिंदुओ ने मुम्बई में मुसलमानों को मारा आज मराठी हिंदु उत्तर भारतीय हिंदुओं को मार रहे हैं तो मैं क्या करुं ? मेरा उनसे एक ही सवाल रहता है यदि आप कहते हैं कि हिंदुस्तान हिंदुओं का है तो मुम्बई मराठियों का है कहने में गलत क्या है? मेरी उनसे आग्रह बस इतना ही रहता है पहले आप मराठी व उत्तर भारतीय हिंदुओं के संयुक्त उपक्रम द्वारा मुसलमानों के खिलाफ की गई हिंसा की निंदा कीजिए। तभी आपके पास ठाकरे की आलोचना करने का नैतिक अधिकार है।



मुम्बई में हुए साम्प्रदायिक दंगों में बाल ठाकरे, उद्वव ठाकरे, राज ठाकरे मनोहर जोषी गोपीनाथ मुंडे आदि के भड़काने या नेतृत्व में ही मराठी और उत्तर भारतीय हिंदुओ ने मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की थी। हिंदुओ का बड़ा तबका मराठी और हिंदी भाषी का भेद छोड़ मुसलमानो के खिलाफ एकजुट था। तब उत्तर भारतीय हिंदुओ ने शायद ही सोचा होगा कि एक दिन यही ठाकरे उनके लिए इतना खतरनाक बनेगा। कि धीरे धीरे आज उत्तर भारतीय भी मुम्बई में असुरक्षित महसूस करने लगे हैं। अब तो कम से कम हमें हिंदुत्व की इस विभाजनकारी राजनीति को समझना चाहिए अन्यथा हम हमेषा ही फिरकापरस्त ताकतों द्वारा ऐसे ही इस्तेमाल होते रहेंगे।